Wednesday 12 December 2012

दास्ताने पिज्ज़ा


                                                                                                                                                                                                                    आज हम सभी फास्ट फूड के फैन हो गये हैं। जैसे ही फास्टफूड का नाम आता है जेहन में क्या नाम आता है ? जी हाँ दोस्तों पिज्ज़ा, एक ऐसा फरिश्ता जो आधे घंटे में आपके पास पहुँच जाता है।
कई लोगों का मानना है कि ये इटली से इण्डिया में आया किन्तु हकिकत ये है कि पिज्ज़ा की नींव ग्रीक के लोगों ने रखी थी। वहाँ के स्थानिय लोगों ने बङी गोल चपटी ब्रेड को तेल के साथ पकाकर सब्जियाँ, मसाले, खजूर आदी के साथ खाते थे। चपटी ब्रेड का ये अंदाज 18वीं शताब्दी में इटली पहुँचा। जहाँ पिज्ज़ा के नाम से ये लोकप्रिय हुआ।
चुंकी ये सस्ता था और इससे पेट भी जल्दी भर जाता था। जिससे नैपल्स की गलियों में इसका चलन तेजी से फैलने लगा।
1889 की बात है रानी मार्गरीटा अपने पति उम्ब्रांतो प्रथम के साथ इतावली साम्राज्य की यात्रा के दौरान घूमते हुए वहाँ पहुंची। वहाँ उन्होने देखा कि किसान बङे चाव से चपटी ब्रेड खा रहे हैं। फिर क्या था रानी ने वो चपटी ब्रेड देखने की इच्छा जाहिर कर दी। उनके खानसामे ने सोचा कि गरिबों का खाना रानी को कैसे दिया जाये तो, उसने ब्रेड पर टमाटर, मोजारिला, तुलसी की पत्तियाँ, तथा कुछ मसाले डाल कर रानी को पेश कर दिया। रानी को ये डिश बहुत पसन्द आई। वाह भाई! पिज्ज़ा की तो निकल पङी ये तो रानी का प्रिय भोजन बन गया।
जाहिर सी बात है राजमहल में अपनी जगह बनाने वाले पिज्जा को तो लोकप्रिय होना ही था। समय दर समय कई तरह से मॉडीफाई होते हुए ये और भी टेस्टी बन गया। आज आलम ये है कि अमेरिका में लगभग 35 करोङं का ये उद्योग हो चुका है। अमेरिका में अक्टुबर को राष्ट्रीय पिज्ज़ा month (माह) के रूप में मनाते हैं। 93% लोग इस महिने में एक बार पिज्ज़ा जरूर खाते हैं।
भारत में भी इसका उद्योग लगभग 475 करोंङ रुपये तक पहुँच गया है।आज भारत में कई कंपनी पिज्ज़ा बेच रही है। उन्ही में से एक कंपनी है डॉमिनोज, जो 30मिनट में गर्म पिज्ज़ा घर पहुँचाने दावा करती है।
दुकान से घर तक का सफर, गरमा गरम पिज्ज़ा जिस बॉक्स के माध्यम से पूरा करता है उसकी भी अपनी कहानी है। किस्सा 1980 का, इग्रिड कोसर नामक महिला स्टील कंपनी में पर्चेसिंग एजेंट के रूप में काम करती थी। लेकिन इग्रिड की शुरू से इच्छा थी की उसका स्वयं का व्यवसाय हो इसी ख्याल में जिंदगी गुजर रही थी। 1982 में इंग्रिड की मुलाकात पिज्ज़ा बॉक्स बनाने वाली कंपनी के मालिक सेलिस्कर से हुई। सेलिस्कर ने मजाक भरे अंदाज में कहा, हमें एक ऐसे बर्तन की  जरूरत है जिसमें से भाप तो निकल जाए पर इतनी ऊषमा हो कि पिज्ज़ा गर्म रह सके। कोसर को आइडिये में दम नजर आया और उसने इस पर काम करना शुरू कर दिया। अनेक शोध के बाद इंग्रिड ने एक ऐसा बैग बनाया जो 140डिग्री पर 45मिनट तक पिज्ज़ा को गर्म रख सकता था। 1983 में इंग्रिड ने अपने इंसुलेटेड बैग का पेटेंट करा लिया। इस तरह उसका स्वयं के व्यपार का सपना साकार हो गया। पिज्ज़ा बाजार में इसकी मांग आज भी है।

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