Friday 26 April 2013

Life & Puzzles


आज हम सभी के जीवन की रफ्तार बहुत तेजी से भाग रही है। लाइफ में कई उलझनों का ताना-बाना भी साथ-साथ चलता है जिससे हम सभी थोङा परेशान भी हो जाते हैं। दिन की शुरुआत के साथ ही हमें चुनौतियाँ मिलनी शुरु हो जाती हैं और एक साथ कई विचार दिमाग को जाम कर देते हैं। परिणामस्वरूप हमारा दिमाग ऊबने लगता है। परन्तु आगे बढने की प्रक्रिया में उलझनों से निजात पाने के लिये नित नये तरीकों को भी आजमाते हैं। ऐसे में हम खोजते हैं नए-नए खेल, जिज्ञासाओं को शान्त करने वाली पहेलियाँ।

मनोवैज्ञानिक सत्य है कि, पहेलियां अपने अंदर रहस्य समेटे रहती हैं, जो परेशानियों से दूर दूसरी दुनिया में ले जाती हैं। तर्क, बुद्धि, किस्मत, हांथो या पेंसिल की बदौलत एक ऐसी दुनिया में पँहुच जाते हैं, जहाँ हमारा सामना उन उलझनों से होता है, जो वास्तविकता में उलझनें न होकर हमारी समस्याओं का समाधान होती हैं। माइक्रोसाफ्ट के मालिक बिल गेट्स और उनकी पत्नी मेलिंडा  जब बिजनस के काम से थक जाते हैं या ऊब जाते हैं तो जिग्सा पजल को सुलझाने बैठ जाते हैं और एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं कि कौन पहले उलझन को सुलझा लेगा। कई सेलिब्रिटी अपने मुश्किल से मिले समय को जिग्साँ पजल, क्रॉसवर्ड या सुडोकू पर खर्च करते हैं।

अपनी तीव्रबुद्धि के लिये पहचाने जाने वाले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिटंन का कहना है कि, व्हाइट हाउस में काम के बोझ के बाद जैसे ही उन्हे अखबार पढने का समय मिलता था, वे सबसे पहले क्रॉसवर्ड देखते थे और उसे हल करने की कोशिश करने लगते थे। उनका कहना है कि क्रॉसवर्ड की उलझने मुझे तनाव से मुक्त करने के साथ ही तनाव को झेलने की शक्ति भी देती हैं। वैज्ञानिक मत है कि क्रॉसवर्ड को सुलझाने पर व्यक्ति तरोताजा होकर आगे के काम करने के लिये नई ऊर्जा महसूस करता है।

पहेलियाँ दिमाग की आवश्यकता है। समय और मस्तिष्क की क्षमताओं के साथ पहेलियां जीवन को बदलने की क्षमता भी रखती हैं। दुखों में एक अच्छे साथी की तरह पहेलियों की उलझने हमें परेशानियों से उबरने में मदद करती हैं। वे हमारा ध्यान परेशानियों से हटाकर कहीं और मोङ देती हैं। कई बार हमारी मुश्किलों का समाधान इन पहेलियों को हल करने में मिल जाता है। ऐसी मानवीय तरकीब के कारण व्यक्ति स्फूर्तीदायक विचारों के साथ पुनः अपनी दुनिया की उलझनों को सुलझाने में लग जाता है। 

Wednesday 24 April 2013

पवन पुत्र वीर हनुमान




भगवान शिवजी का 11वां रुद्र अवतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान, जिसके गुरु स्वयं सूर्य, ऐसे परम पूज्य अवतार हनुमान जी को  गोस्वामी तुलसीदास जी ने  अघटित घटन-सुघटन विघटनकह कर उनकी शक्ति का उल्लेख किया है। हनुमान जी का सम्पूर्ण जीवन भक्त का जीवन है। व्यक्तिगत सुख-दुख से परे एक निष्काम साधक के रूप मे सदैव भगवान राम के चरणों में अनन्य भक्ति में लीन कर्तव्यनिष्ठ बजरंगबली अनेक नामों से पूजे जाते हैं, जैसे- मारुति , अंजनि सुत , पवनपुत्र , संकटमोचन , केसरीनन्दन , महावीर , कपीश , बालाजी महाराज आदि।

पिता पवन और माता अंजनी के पुत्र हनुमान जी को सभी देवताओं की शक्ति प्राप्त है। इन्द्र के वज्र से हनुमान जी की ठुड्डी (संस्कृत मे हनु) टूट गई थी| इसलिये उनको हनुमान कहा जाता है। परंतु पद्मपुराणमें हनुमान नाम के विषय में विचित्र कल्पना मिलती है- हनुसहनामक नगर में बालक ने जन्म-संस्कार प्राप्त किया, इसीलिए वह हनुमानके नाम से प्रसिद्ध हुए। श्री हनुमान जी स्वयं तो बलवान हैं ही, दूसरों को बल प्रदान करने में भी समर्थ हैं। बजरंगबली प्रत्येक क्रिया में मन की गति से अग्रसर होते हैं, उनकी तीव्रगामिता केवल परहित-साधन अथवा स्वामी-हित-साधन तक ही सीमित है। वे मन के अधीन होकर ऐसा कोई कार्य नहीं करते जो उनकी महत्ता को धुमिल करे, इसीलिए उनको जितेन्द्रियम् भी कहा गया है।

रघुतिप्रियभक्तम् अर्थात् भगवान श्री राम के प्रिय भक्त। वातजातम् अर्थात वायुपुत्र हनुमान बाल-ब्रह्मचारी थे। लेकिन मकरध्वज को उनका पुत्र कहा जाता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, लंका जलाते समय आग की तपिश के कारण हनुमानजी को बहुत पसीना आ रहा था। इसलिए लंका दहन के बाद जब उन्होंने अपनी पूँछ में लगी आग को बुझाने के लिए समुद्र में छलाँग लगाई तो उनके शरीर से पसीने की एक बड़ी-सी बूँद समुद्र में गिर पड़ी। उस समय एक बड़ी मछली ने भोजन समझ वह बूँद निगल ली। उसके उदर में जाकर वह बूँद एक शरीर में बदल गई। एक दिन पाताल के असुरराज अहिरावण के सेवकों ने उस मछली को पकड़ लिया। जब वे उसका पेट चीर रहे थे,  तो उसमें से वानर की आकृति का एक मनुष्य निकला। वे उसे अहिरावण के पास ले गए। अहिरावण ने उसे पाताल पुरी का रक्षक नियुक्त कर दिया। यही वानर हनुमान पुत्रमकरध्वजके नाम से प्रसिद्ध हुआ।

राम भक्त हनुमान जी को सदैव सिन्दूर का चोला चढता है। ऐसा क्यों होता है? इसकी बहुत ही रोचक कथा है। एक बार की बात है, जब माता सीता श्रृंगार करके अपनी माँग में सिन्दूर को सुशोभित कर रह थीं तभी हनुमान जी ने माता से निवेदन किया कि हे माता आप अपनी माँग में सिन्दूर क्यों भरती हैं? तब माँ सीता ने हनुमान जी को बताया कि तुम्हारे आराध्यदेव भगवान श्री राम की लंबी आयु और स्वास्थ कामना के लिये माँग में सिन्दूर भरती हूँ। राम भक्त हनुमान जी को लगा की जब माँ अपनी मांग में थोङा सा सिंदूर भरती हैं तो उससे आराध्यदेव दीर्घायु होते हैं, तब हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर मलकर मां से कहा कि मेरे सिंदूर लगाने से भी मेरे आराध्यदेव की आयु लंबी होगी। तब माता सीता ने हनुमान जी की प्रभु भक्ति देख प्रसन्न होते हुए आर्शीवाद दिया कि जो भी मनुष्य हनुमान जी को सिदूंर चढाएगा उसकी हर मनो कामना पूर्ण होगी। माना जाता है कि आदि-अनादिकाल से भक्तगणं आज भी इस प्रथा का पूरी निष्ठा से पालन करते हैं। रामायण के अनुसार हनुमान जी जानकी माता के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है उनमें बजरंगबली भी हैं।

संकट मोचन पवनपुत्र हनुमान जी में भक्तो की असीम आस्था है। मंदसौर शहर के बीच स्थित तलाई वाले बालाजी जी को चोला चढाने के लिये सालों इंतजार करना पङता है। वाराणसी का संकट मोचन मंदिर देश के प्रसिद्ध प्राचीन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में आस्था रखने वाले भक्तों की संख्या लाखों में है। भक्त इस मंदिर को दुःखहर्ता मंदिर भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि तुलसीदास जी ने इस मंदिर की स्थापना करवाई थी और वे रोज यहाँ पूजा करने आते थे। सभी के संकट को हरने वाले अंजनीपुत्र हनुमान जी की पूजा देश के सभी आंचलों में भक्तगंण पूरी आस्था से करते हैं।
हनुमान ज्यन्ति के इस पावन पर्व पर सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण हो एवं सभी पर संकटमोचन बजरंगबली की असीम कृपा बनी रहे यही कामना करते हैं।





Thursday 18 April 2013

डर



मार्च का महिना जैसे ही शुरु होता है कई विद्यार्थियों के मन में एक अन्जाना डर दिखने लगता है। ये आलम मई, जून तक रहता है। ये एक प्रकार का फोबिया है जिसे एक्जामिनेशन फोबिया कहते हैं। फोबिया या भय एक तरह का आंतरिक डर होता है। डर दिमाग की उपज है, लेकिन उसका असर मन और शरीर दोनो पर पङता है। हम सभी डर का अदुभव करते हैं, बल्कि साक्ष्य ये बताते हैं कि हम सभी कभी न कभी डर से जरूर डरे हैं।
डर जीवन का एक हिस्सा है जो कई बार हमें आगे बढने में भी मदद करता है। खुद को आग से बचाना या ड्राइवर के हार्न देने पर रास्ते से हट जाना ये भी एक प्रकार का डर ही तो है जो सकारात्मक पहलु को दिखाता है। यदि बच्चे में डर न हो तो उसके अस्तित्व को खतरा बना रहता है। यही डर हमारे लिये एक जीवन सुरक्षात्मक उपाय है।

डर एक मानवीय प्राकृतिक संवेदना है, जिससे हर कोई गुजरता है, चाहे वो मशहूर हस्ती ही क्यों न हो। अंतर यही है कि कुछ लोग इसे मान लेते हैं या कुछ इसे अंदर रख कर मुकाबला करते हैं। एक्शन हीरो जैकी चान खतरनाक स्टंट के लिये पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। अनेक मंजिलों से कूद जाना जैकी के बाँए हाँथ का खेल है लेकिन इंजेक्शन के ख्याल से ही उनको पसीना आ जाता है। उन्हे इंजेक्शन फोबिया बचपन से है। हैरी पॉटर की लेखिका जे.के. रोलिंग ने अपनी पुस्तक में तिलिस्म की दुनिया का बहुत संजीदगी से वर्णन किया लेकिन स्वयं मकङियों से डरती हैं। प्रोफेसर जीन के अनुसार फोबिया किसी को भी हो सकता है। इस बात से फर्क नही पङता कि आप कितने साहसिक हैं, बुद्धीमान हैं और तर्कशक्तियुक्त हैं। एडोल्फ हिटलर से लेकर मार्क ट्वेन तक हर किसी को फोबिया के कहर ने अपना शिकार बनाया है।

आयरिश कवि, कहानीकार,नाटककार, ब्रेडन फ्रांसिस ने कहा है, हमारे ज्यादातर डर टिश्यु पेपर जितने पतले होते हैं और साहस से उठाया कदम हमें उससे बाहर निकाल लाता है। एक फिल्मी डॉयलॉग बहुत चलन में है कि जो डर गया वो मर गया। डर पूरी तरह असंभावित है। कुछ भी कभी भी डरा सकता है। किसी को फूलों का (एंथोफोबिया) तो किसी को पानी का (एक्वाफोबिया) डर होता है। कुछ लोगों को ऊँचाई से (एक्रोफोबिया) डर लगता है तो किसी को 13 अंक (ट्रिसकैडेकाफोबिया) डराता है। एक शोध के अनुसार 18-30 वर्ष के लोगों में ऊँचाई या उङान के डर की तुलना में मकङी, सुई या क्लाउन का डर पाया गया।

फोबिया को जीतने का सबसे सरल तरीका है उसे समझकर उसका सामना किया जाये। नियंत्रण से बाहर की परिस्थितियों के बारे में बैठकर सोचने और चिन्ता करने की अपेक्षा डर को दूर करने का प्रयास करें क्योंकि जिंदगी बहुत छोटी है, इसलिये जोखिम उठायें, बढें और सीखें क्योंकि डर के आगे जीत है।
So Friends,  डर को खत्म करने का सिर्फ और सिर्फ एक ही तरीका है, कि हम निडर हो कर उसका सामना करें।  

Friday 12 April 2013

उपवास



भारतवासियों में उपवास करने की प्रथा बहुत ही पुरानी और महत्वपूर्ण हैं। धार्मिक दृष्टी से अगर हम देखें तो, उपवास दो शब्दों उप + वास से मिलकर बना है जिसका अर्थ है, निकट निवास करना अर्थात उपवास के माध्यम से ईश्वर से निकटता बढ जाती है। हम सब धर्म की चर्चा करते हैं एवं कुछ सकारात्मक सोचते हैं जो हम सभी के बेहतर जीवन के लिये उपयोगी है।

आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ चरक संहिता से लेकर आज के विभिन्न चिकित्सीय शोधों ने उपवास को लाभकारी बताया है। उपवास का तातपर्य है कि शरीर के पाचनतंत्र को आराम देना। कुदरत की माँग भी है कि कुछ समय पेट को आराम दिया जाये ताकि स्वस्थ जीवन बिताया जा सके। उपवास का मतलब भूखा मरने से नही है न ही इसके नाम पर फरियाली पकवान खाना...! जैसे- खिचड़ी, चिप्स, फरियाली मिक्चर, साबूदाना बड़े, मूँगफली के नमकीन दाने आदि दिन भर खाते रहने से लाभ के बजाय हानि ही होती है। वहीं यदि उपवास सही तरीके से किया जाए तो शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुँचता। हमारे शरीर में कई तरह के विषाक्त एकत्र हो जाते हैं उनको शरीर से निकालना भी उपवास है।
उपवास के समय अधिक मात्रा में जल का सेवन करना चाहिए। अधिक कमजोरी होने पर नींबू-पानी ले सकते हैं। इससे आँतों की सफाई अच्छी तरह से हो जाती है। उपवास वाले दिन सुबह एवं शाम पैदल घूमना चाहिए।
आज कई धर्मों में ऐसी मानसिकता जन्म ले रही है जहाँ व्रत कंपटिशन की शक्ल में दृष्टीगोचर हो रहा है, दूसरों में अपने को श्रेष्ठ साबित करने के लिये अधिक से अधिक व्रत करते हैं। उपवास के सार्थक लाभ को समझ कर उसे आत्मसात करना चाहिये। कहते हैं काया राखे धर्म कोई भी व्रत या उपास अपनी शारीरिक शक्ती के आधार पर करना चाहिये, न तो किसी के कहने पर या न किसी की देखा देखी, स्व विवेक से किया उपास ही सही अर्थ में उपवास है।

उपवास का उद्देश्य होता है पाचन प्रणाली को पूर्ण रूपेण अवकाश प्रदान करना। जो भी भोजन हम ग्रहण करते हैं उसे पचाने के लिए शरीर को बहुत सारी उर्जा खर्च करनी पड़ती है |शरीर की पाचन प्रणाली सुचारू ढंग से कार्य करती रहे इसलिए उसे सप्ताह में कम से कम एक दिन के लिए पूर्णतया अवकाश प्रदान करना चाहिए | हमारे धर्म शास्त्रों में विभिन्न व्रत,उपवास को स्वस्थ्य की द्रष्टि से ही जोड़ा गया है।
आस्था ,पवित्रता के साथ किया गया उपवास हमारे मस्तिष्क व् शरीर दोनों को शुद्ध करता है| उपवास के दौरान भोजन को पचाने वाली जो उर्जा बचती है वह शरीर के दोष दूर करने एवं रोगमुक्त करने में लग जाती है| तीव्र रोगों में उपवास के समान कोई औषधि नही है| इस मामले में मनुष्य से अधिक जानवर अधिक संवेदनशील होते हैं क्योंकि वे बीमार पड़ने पर सबसे पहले भोजन का त्याग कर देते हैं और बिना किसी औषधि के स्वस्थ्य भी हो जाते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि रोगमुक्त करने की शक्ति शरीर मे ही मौजूद है, आवश्यकता इस बात की है कि उस उर्जा का सही वक्त पर सही उपयोग किया जाये|

आयुर्वेद में उल्लेख है- अग्नि आहार को पचाती है और उपवास दोषों को पचाता अर्थात नष्ट करता है। निश्चय ही उपास ऐसी औषधि है जिसमे बिना किसी खतरे के रोग दूर कर देने की क्षमता है। अमेरिका के सुप्रसिद्ध डॉक्टर चाल्सर् सी. हक्सले की चिकित्सा पद्धति के अनुसार, उपवास पद्धति से कठिन रोग भी अच्छे हो जाते हैं।

उपवास केवल भोजन त्यागने से ही पूर्ण नही होता, हमें अपने विचारों को भी सात्विक बनाना चाहीये तभी सही मायने में उपवास पूरा होता है क्योंकि ये वो क्रिया है जिससे हमारी इक्छा शक्ती (will power) मजबूत होती है। Strong, will power से हम जीवन की विषम परिस्थितियों से सामना कर सकते हैं एवं शान्त भाव से उसका निवारण भी। अतः मित्रों, स्वस्थ मन और स्वस्थ तन के लिये उपवास अचूक औषधि है।

Wednesday 10 April 2013

नव वर्ष मंगलमय हो



न्याय प्रिय राजा विक्रमादित्य, जिनका दरबार वराहमिहिर, अमरसिहं, कालीदास, धन्वन्तरि और वरुरुची जैसे रत्नो से प्रकाशमान था, ऐसे महान सम्राट की सोच का परिणाम है विक्रम संवत। हिन्दु धर्म में सभी शुभकार्य एवं त्यौहार विक्रम-संवत के कलेण्डर में स्थित तिथियों के अनुसार ही पूर्ण होते हैं। चैत्र, बैशाख, जेष्ठ, आषाण, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन से सुशोभित हिन्दु नववर्ष का प्रथम दिन भारतीय संस्कृति की अनेकता में एकता का प्रतीक है। गुङी-पङवा हो या चेटीचंद हर फिजा में नववर्ष की धूम है। सूर्य, चन्द्र और ग्रहों का आधार लिये विक्रम संवत और शक संवत विजय घोष की पहचान है। माँ का शुभ आशिर्वाद लिये नववर्ष का शुभ संदेश है।शक्ती की उपसना के साथ, विक्रमीसंवत के चैत्र मास के प्रथम दिवस पर सभी के लिये मंगल कामना करते हैं।

नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ सूरज का उदय हो,
नई सोच और नये विकास की धूप हो,
स्वस्थ भाईचारे की भावना का आगाज हो,
मिले सभी को नव खुशी, नित्य नया विश्वास हो,
सपरिवार सहित प्रियजन और मित्रजन की मंगलमय शुरुवात हो।



Sunday 7 April 2013

First African American female judge



आत्मियता, दया, और ममता की प्रतिमूर्ती  श्रीमती सेम्पसन, न्याय प्रणाली की जटिलता और न्याय के लिये समय तथा धन के व्यय से व्यथित लोगों की समस्या को गहराई समझती थीं। उनका मानना था कि, समय अनमोल है, समय गँवाने का अर्थ होता है- जीवन गँवाना। सेम्पसन संयुक्त राष्ट्र अमेरिका कि प्रथम अश्वेत महिला थीं जिन्हें हाईकोर्ट बेंच स्तर का न्यायाधीश पद मिला था।

शिकागो की म्युनिसिपल कोर्ट दुनियाँ के सबसे बङे और सबसे व्यस्त न्यायालयों में से एक है। प्रतिवर्ष इस न्यायालय में लगभग 30लाख से भी ज्यादा मुकदमें आते हैं। दिन-पर-दिन जटिल होती जीवन की समस्याओं को सेम्पसन ने समझा और उसका समुचित समाधान करने का भी प्रयास किया। उनका कहना था कि, एक व्यक्ति न्याय पाने के लिये एक दिन काम का हर्ज करे यह भी उनके लिये बहुत होता है। यदि उन्हे कई दिनों तक इंतजार करना पङे तो इसका स्पष्ट अर्थ आर्थिक संकट होगा जिसका असर न केवल उस व्यक्ति पर पङता है वरन पूरे देश को भी प्रभावित करता है। उनका न्यायालय विश्व का अपने ढंग का अनूठा न्यायालय था। वे दिनभर में सैकङों मुकदमें निपटा देती थीं।

एडिथ सेम्पसन का न्यायाधीश तक का सफर आसान नही था। उन्हे बहुत संघर्ष करना पङा था। अमेरिका में जब गोरे काले का भेद चरम शिखर पर था, हर क्षेत्र में अश्वेतों को हिकारत की नजर से देखा जाता था। पक्षपात पूर्ण वातावरण के बावजूद इतने बङे पद पर पहुँचना किसी आश्चर्य से कम नही है। एडिथ का जन्म 1901 में एक गरीब परिवार में हुआ था। पिता एक सिलाई की दुकान पर काम करते थे एवं माता हेट बनाती थीं। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद उनके पास श्रम और संतोष की संपदा पर्याप्त थी। दृणइच्छा शक्ती और धैर्य के साथ वे दिन में काम करती तथा रात्री पाठशालाओं और कॉलेजों में अध्ययन करती रहीं। उनकी मेहनत का फल ही था कि शिकागो में जानी-मानी वकील में उनकी गिनती होने लगी थी। उनकी प्रतिभा को सम्मान मिला, राष्ट्रपति ट्रूमेन के द्वारा 1950 में तथा 1952 में संयुक्त राष्ट्र संघ में भेजे गये प्रतिनिधि मंडल में सदस्य मनोनित हुईं। 1962 में जज के रूप में नियुक्त हुईं।

 सादा जीवन एवं उच्च विचार वाली सेम्पसन के व्यक्तित्व से हर कोई प्रभावित होता था। लेकप्रियता का आलम ये था कि वे जिधर से भी निकल जातीं सभी श्रद्धा युक्त अभिवादन करते। उनके कोर्ट के एक वकील का कहना है कि--  श्रीमती सेम्पसन के न्यायालय में मानवीय अधिकारों को संपदा के अधिकारों से उच्च स्थान दिया जाता है। उनके न्याय की सबसे बङी विशेषता सहज अनौपचारिक प्रक्रिया है। जज का सम्मान भी कम न होने पाए और काम भी शीध्र हो जाए इस दृष्टी से वे सर्वोत्तम न्यायाधीश हैं। 

उनका व्यक्तित्व और उनका अध्यव्यसाय अनेक लोगों के लिये प्रेरणा-प्रकाश के रूप में कार्य कर रहा है। उनका कहना था की- अपनी योग्यता, अपना पात्रत्व विकसित करो, श्रेय और सम्मान तो तुम्हारा इंतजार करता मिलेगा।

1979 में लोगों के दुख को समझने वाली समाजसेविका एवं न्यायधीश इहलोक को त्यागकर परलोक सिधार गई, परन्तु आज भी सेम्पसन के प्रति न केवल अश्वेतों के मन में श्रद्धा है वरन कितने श्वेत लोग भी उनको अपनी माता की तरह मानते हैं।

काश, हमारे देश में भी श्रीमती सेम्पसन जैसी न्यायप्रणाली को मानने वाले न्यायाधीश होते तो न्यायालय से गरीब देशवासियों को जल्दी और कम खर्च में न्याय मिल पाता।


Thursday 4 April 2013

A request


हम सब सामाजिक प्राणीं हैं। समाज के अलग-अलग वर्गों के सहयोग से ही हमारा विकास होता है, या यूँ कहें कि हम सब एक दूसरे के सहयोग पर ही निर्भर हैं। ऐसे ही सहयोग की कामना दृष्टीबाधित बच्चे भी हम सभी से रखते हैं। आज अपनी मेहनतशिक्षा और विज्ञान के आधुनिक उपयोग से अनेक दृष्टीबाधित बच्चे आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रहे हैं किन्तु समाज एवं सरकार की उदासीनता की वजह से कई बार आगे बढने से वंचित रह जाते हैं। जरा सोचिये, अगर  आप साल भर खूब मन लगाकर पढाई करें और परिक्षा के समय किन्ही कारणों से परिक्षा न दे पायें तो कैसा लगेगा! निःसंदेह बहुत तकलीफ होगी। अभी हाल में कई दृष्टीबाधित बच्चियों ने खूब मन लगाकर पढाई की। किन्तु परीक्षा के समय सहलेखक (Scribe) न मिलने कारण या राइटर के देर से आने के कारण परीक्षा न दे सकीं, जिसके कारण उनका भविष्य प्रभावित हुआ। पूरे वर्ष सफलता के सपने लिये तैयारी करती बच्चियों का सपना सामाजिक उदासीनता की वजह से टूट गया। सभ्य समाज का ये कैसा रूप है? हम किस मानवीय समाज की बात करते हैं?

वैज्ञानिक दृष्टीकोंण से हम 80% ज्ञान आँखों द्वारा अर्जित करते हैं और 20% सुनकर एवं स्पर्श के माध्यम से सीखते हैं। दृष्टीबाधित बच्चे दृष्टीज्ञान के अभाव में केवल 20%  ज्ञान से ही अपना विकास करने का प्रयास कर रहे हैं। हमारी शैक्षणिक व्यवस्था में लगभग 9वीं कक्षा से उच्च कक्षा हेतु ब्रेल में पुस्तकें नही हैं। दृष्टीबाधित बच्चे विषय संबन्धित पाठ्यक्रम को सुनकर करके याद करते हैं, जो कई सामाजिक संस्थाएं या समाज के कुछ लोग रिकार्ड (Record) कर देते हैं। आगे बढने में सबसे बङी समस्या है राइटर की। परिक्षा के समय ये बच्चे अपने उत्तरों को मौखिक बोलते हैं जिन्हें सामान्य बच्चे उत्तर पुस्तिका पर लिखते हैं। 
कई बार ऐसा होता है कि समाज के कुछ जागरुक व्यक्ति संस्थाओं में जाते हैं और दृष्टिबाधित बच्चों के लिये कपङे तथा भोजन इत्यादि की व्यवस्था करते हैं। ये बहुत अच्छी बात है और जरूरी भी है। परन्तु एक विचार कीजिये- क्या हम अपने बच्चे का पूर्णविकास सिर्फ कपङे या भोजन से कर सकते हैं? कदापी नहीं। हम उसके मानसिक एवं शैक्षणिंक विकास के लिये उसे विद्यालय भेजते हैं एवं वहाँ से जुङी सभी आवश्यकताओं को पूरा भी करते हैं। तो दृष्टीबाधित बच्चियों के प्रति ये कैसी जागरुकता जो संपूर्ण विकास को नजर अंदाज करती है?

मित्रों, सामाजिक चेतना का सहयोग मिले तो निःसंदेह दृष्टीबाधित बच्चों में भी आत्म सम्मान से जीवन जीने की मानसिकता का विकास होगा, जो समाज और देश के लिये हितकारी होगा। आपका एक सार्थक प्रयास कई दृष्टीबाधित बच्चों के जीवन को रौशन कर सकता है और उनके आत्मनिर्भर बनने के प्रयास में सहयोग दे सकता है। 
अहिल्याबाई की पावन नगरी इंदौर के पाठकों से एक निवेदन है कि, इंदौर में देवीअहिल्या विश्वविद्यालय की परिक्षाएं लगभग 18 अप्रैल से शुरु होंगी। वहाँ सामान्य छात्राओं के साथ 35 दृष्टीबाधित छात्राएं भी परीक्षा देंगी, परिक्षा के समय सहलेखक (Scribe) की आवश्यकता की पूर्ती हेतु हम आपके सहयोग की अपेक्षा करते हैं। अधिक जानकारी के लिये आप हमें मेल कर सकते हैं। E-mail : voiceforblind@gmail.com
इस कार्य हेतु आपका दिया वक्त उनके लिये जीवन का सबसे अनमोल तोहफा होगा। 
आप सभी पाठकों को तहेदिल से धन्यवाद देते हैं। आपके सुझाव एवं विचार हमारे लिये प्रेरणास्रोत हैं।