Friday 27 February 2015

स्कूल एडमिशन एक जटिल समस्या

दोस्तों, भारत की बढती आबादी के साथ स्कूलों में दाखिले की समस्या भी एक मेजर प्रॉबलम है। हर कोई अपने बच्चे को अच्छे स्कूल में पढाना चाहता है। शिक्षा ग्रहणं करना हम सभी का मौलिक अधिकार भी है। परंतु प्राइवेट स्कूलों की मनमानी के कारण कई अभिभावक अपने बच्चों का दाखिला मन पसंद स्कूल में नही करा पाते। सामान्य लोगों की तरह दृष्टीबाधित बच्चों के माता-पिता भी अपने बच्चे को पढाना चाहते हैं। उनके तो सिर्फ इतने ही अरमान होते हैं कि किसी  भी विद्यालय में हमारे दृष्टीबाधित बच्चे को दाखिला मिल जाए और बच्चा नियमित स्कूल जाते हुए शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बन सके।  हमारे समाज की ये विडंबना है कि, सामान्य बच्चों की अपेक्षा दृष्टीबाधित बच्चों को दाखिले के लिए अधिक दिक्कतों का सामना करना पङता है क्योंकि उन्हे तो अक्सर देखते के संग ही मना कर दिया जाता है। आलम तो ये है कि सरकारी स्कूल में भी एडमिशन लेने से मना कर देते हैं। प्राइवेट स्कूल में दाखिला तो बहुत दूर की बात है।

कुछ समय पूर्व मुझे एक रेडियो चैनलरेडियो उङान पर एक मुलाकात कार्यक्रम में शिरकत करने का अवसर मिला। जिसमें दाखिले को लेकर परिचर्चा हुई। वहाँ मुझे जो जानकारी प्राप्त हुई, उससे हमारे समाज की उदासीनता और संकीर्ण सोच ही परिलाक्षित होती है। वहाँ उपस्थित जानकारी और लोगों के अनुभव सुनने से पता चला कि, दृष्टीबाधिता के कारण बच्चों के एडमिशन नही होते जिससे बच्चों के साथ उनके माता-पिता को भी अनेक परेशानियों का सामना करना पढता है। यहाँ तक कि उनसे कह दिया जाता है कि, अपने बच्चे को घर पर रखो या किसी स्पेशल स्कूल में ले जाओ। कुछ लोगों का नजरिया तो इतना ज्यादा तकलीफ दायक होता है कि, वो किसी भी शिक्षित सभ्य समाज को परिभाषित नही करता। उनका कहना होता है कि, तुम्हारे पिछले जन्म का पाप है और तुम तो अभिशाप हो। सोचिए! किसी के लिए भी ये सुनना कितना तकलीफ दायक होगा। फिर भी दृष्टीबाधित बच्चे बुरा नही मानते अपने एडमिशन के लिए अनुरोध करते हैं। मित्रों, दृष्टीबाधित बच्चे भी हमारे ही समाज का एक हिस्सा हैं, जिसमें उनकी कोई गलती नही है बल्की इस प्रकार की अक्षमता तो कुछ प्राकृतिक कारणों या जन्म के समय हुई लापरवाही तथा दवाईयों के गलत इफेक्ट से हो जाती है। मेरा व्यक्तिगत अनुभव ये है कि, यदि समाज में उनके प्रति स्वस्थ सोच और सहयोग की भावना  हो तो किसी भी  दृष्टीबाधित बच्चे को किसी भी स्कूल में पढाया जा सकता है। जहाँ तक उनके लिखने की प्रणाली ब्रेल लीपी की शिक्षा की बात करें तो, उनको प्राथमिक स्तर पर कई प्राइवेट तथा सरकारी संस्थाओं द्वारा प्राप्त हो जाती है। परंतु आगे की शिक्षा हेतु उन्हे सामान्य बच्चों के साथ ही पढने की जरूरत होती है। कई बच्चे सामान्य बच्चों के साथ पढते हुए सफलता की इबारत भी लिख रहे हैं। ये भी सच है कि जिन बच्चों को एडमिशन मिला उनका सफर आसान नही था। कई स्कूलों में एडमिशन के लिए चक्कर लगाना पङा। कहते हैं पाँचो ऊँगली बराबर नही होती उसी तरह समाज में भी कुछ अच्छे लोग भी हैं, जिन्होने एडमिशन दिया और दृष्टीबाधित बच्चों से उन्हे उत्साह जनक परिणाम भी मिले। 

दोस्तों, इस लेख के माध्यम से आप सबसे पुनः अनुरोध करते हैं कि, अपने आस-पास के स्कूलों में ऐसे बच्चों के एडमिशन की प्रक्रिया को सरल बनाएं। निःसंदेह इन बच्चों के साथ थोङी ज्यादा मेहनत करनी होगी, परंतु विचार किजीए हम सभी की थोङी जागरुकता कई बच्चों के जीवन को रौशनी दे सकती है और उन्हे आत्मनिर्भर बनाकर समाज में भारतीय संस्कृती का शंखनाद कर सकती है। उनकी शिक्षा हेतु सहलेखक और पाठ्यपुस्तक की रेर्काडिंग में अपनी जागरुकता को एक नई दिशा दिजीए। अधिक जानकारी के लिए लिंक पर क्लिक करें..

"जिंदगी हमें किसी सार्थक काम का अवसर देकर सबसे बङा ईनाम देती है। आओ कुछ अच्छा सोचें, कुछ अच्छा करें, स्वंय को और अपनी सोच को सामाजिक कार्य के माध्यम से आसमान छुने दें।" 


धन्यवाद 







Tuesday 24 February 2015

रेडियो उङान एक नया प्रयास

मित्रों, रविवार 22 फरवरी को रेडियो उङान पर मुझे एक मुलाकात कार्यक्रम में शिरकत करने का अवसर मिला, जिसमें शिक्षा के क्षेत्र में एडमिशन प्रक्रिया पर चर्चा हुई। दृष्टीबाधित बच्चों को एडमिशन के दौरान जिन परेशानियों का सामना करना पङता है, उन समस्याओं पर प्रकाश डाला गया। हम इस विषय पर अपने अगले लेख में विस्तार से बात करेंगे। फिलहाल मुझे ये बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि विजुअल इम्पेयर्ड बच्चे अपने हौसले की उङान से आज एक रेडियो स्टेशन का संचालन कर रहे हैं। उनकी बेबाक वार्तलाप और रेडियो के क्षेत्र में तकनिकी ज्ञान, उनके जज़बे को बयाँ करती है। आज रेडियो उङान के सभी सदस्य, आगे बढने की चाह लिए अपनी पहचान को नई दिशा दे रहे हैं। किसी ने सच ही कहा है कि,  

"मंजिल उन्ही को मिलती है जिनके सपनो में जान होती है पंखो से कुछ नही होता हौसले से उङान होती है।" 

ऐसे ही हौसले की उङान को आगे बढाते हुए रेडियो उङान आज लगभग 123 देशों में सुना जा रहा है। ये एक इंटरनेट रेडियो है। हिम्मते मर्दा मर्ददे खुदा का आगाज करते हुए रेडियो उङान के माध्यम से कई सामाजिक मुद्दों पर चर्चाएं, समाचार, गाने, सामान्य ज्ञान इत्यादि अनेक कार्यक्रमों को सफलता पूर्वक  प्रसारित किया जा रहा है। अब रेडियो उङान के बारे में विस्तार से जानते हैं। 

दृष्टि बाधित लोग एक लम्बे समय से अपनी मंजिल की तालाश में लगे हैं और अपने और समाज के लिए कुछ कर गुजरने के प्रयास में हैं। इसी दिशा में राष्ट्रिय स्तर पर एक प्रयास उड़ान वैल्फ्यर सोसाइटी के सदस्स्यों  की तरफ से टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में एक बहुत बड़ा योगदान दे कर किया गया है। इस विशेष वर्ग को सामान्य कहे जाने वाले वर्ग से जोड़ने में प्रयासरत है रेडियो उड़ान, बल्कि कहें की इस समाज को बहुत बड़ा तोहफा है।  2 फरवरी 2014 से यह निरंतर प्रगति की और बढ़ रहा है, दिन-ब-दिन इसके श्रोता भी बढ़ रहे हैं। एक वर्ष में 123 देशों में 1 लाख से भी अधिक लोग इसे सुन रहे हैं। 

रेडियो उड़ान क्या है?
रेडियो उड़ान दृष्टि बाधित लोगों द्वारा निर्मित और प्रसारित एक ऑनलाइन रेडियो स्टेशन है जो की इंटरनेट  द्वारा विश्व में २४ घंटे सुना जा सकता है। रेडियो उड़ान, श्रोताओं को रेडियो कार्यक्रमों के माध्यम से विविध विषयों की जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया गया है। विभिन्न रेडियो कार्यक्रमों के माध्यम से कई लोग दिलचस्प मनोरंजन का आनंद ले रहे हैं। इस रेडियो पर आप संगीत से ले कर ज्ञान तक, समाचारों से ले कर तकनिकी विज्ञान तक, और अन्य कार्यक्रम सुन सकते हैं और कार्यक्रमों में स्काइप  के माध्यम से भाग भी ले सकते हैं।  हर रोज़ शाम 7 से  11  बजे तक ४ कार्यक्रम प्रसारित किये जाते हैं और वही कार्यक्रम अगले दिन 2 बजे से 6 बजे तक दुबारा भी सुने जा सकते हैं और आप बाकी के समय में चुनिन्दा गीतों का आनंद भी उठा सकते हैं। 

रेडियो उड़ान को सुनना बहुत आसान है। करना सिर्फ इतना होगा की रेडियो उड़ान की वेबसाईट www.radioudaan.com पर जा कर ऊपर दिखाई दे रहे प्ले बटन को दबाने से या फिर ट्यून हैडिंग  के निचे दिए गए प्लेयर्स को डाउनलोड करने से रेडियो उड़ान की खनकती आवाज़ सुनाई देगी। हम इसे स्मार्ट फोन या नोकिया मोबाइल पर भी इन्टरनेट ऐक्सिस कर के सुन सकते हैं।

रेडियो उड़ान पर अब तक लगभग 60 से भी अधिक दृष्टीबाधित रेडियो जॉकी कार्य कर चुके हैं। इस रेडियो का वेब डिजाइनिंग, वेब होस्टिंग, रेडियो जॉकी जैसे सभी कार्य दृष्टि बाधित लोग ही करते हैं।

केंद्रीय निर्देशक मीनल सिंघवी, कार्यक्रम प्रबंधक ज्योति मलिक, महासचिव दानिश  महाजन, सयुंक्त सचिव सैफ रेहमान, सलाहकार राजीव भाम्बरी तथा मीडिया प्रवक्ता बालानागेंद्रण वर्तमान रेडियो उड़ान के कार्यभार को मिल कर संभाल रहे हैं.


आप  www.radioudaan.com http://www.radioudaan.com पर ये रेडियो सुन सकते हैं। इस रेडियो के बारे में फ़ोन नंबर 09463668196 और ईमेल mail@radioudaan.com पर आप अधिक जानकारी पा सकते हैं। 

मित्रों, ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, जहाँ थोङी सी परेशानियों में लोग हार मान लेते हैं। निराशा के आगोश में चले जाते हैं, वहीं ऐसे लोग भी है जिनके लिए दृष्टी बाधिता कोई बाधा नही है। अनेक परेशानियों के बावजूद हिम्मत और हौसले को बुलंद करते हुए एक नया इतिहास लिख रहे हैं। रेडियो उङान के जज़बे को सलाम करते हुए कहना चाहेंगे कि, 

दिपक तो अंधेरे में ही जला करते है, 
फूल काँटो में भी खिला करते हैं,
थक कर ना बैठ ए मंजिल के मुसाफिर,
हीरे अक्सर कोयले में ही मिलते हैं। 

Friday 20 February 2015

सफलता के रास्ते में प्रोत्साहन एक अचूक औषधी है

मित्रों, सामान्यतः सभी लोगों में और उनके कार्यों में अच्छाईयां और कमियां दोनो होती है। कोई भी परफैक्ट नही होता। फिर भी अक्सर देखा जाता है कि, लोग कमियों को ज्यादा हाईलाइट करते हैं क्योंकि उनके विचार से यदि कमियों को ज्यादा दिखाएंगे तो व्यक्ति अपनी गलतियों को सुधार लेगा। परंतु सच्चाई ये नही होती, कई बार लगातार गलतियों को गिनाने से व्यक्ति त्रस्त हो जाता है और वे उस कार्य को करना ही छोङ देता है या इतना ज्यादा हतोत्साहित हो जाता है कि निराशा के आगोश में चला जाता है। वो सोचने लगता है कि हम तो जिंदगी में कुछ कर ही नही सकते। मनोवैज्ञानिक नजरिये से यदि सोचें तो, सच्चाई ये है कि जब हम किसी की गलतियों को फोकस करते हैं तो सिर्फ दूसरों के नजरिए से देखते हैं। हम ये नही सोचते कि यदि हमें हरपल नाकामी ही दिखाई जायेगी तो हमें कैसा लगेगा। अक्सर हम लोग पर उपदेश कुशल बहुतेरे की धारा में बहते जाते हैं। सामान्यतः लोग प्रशंसा और प्रोत्साहन के महत्व को नही समझते और बेवजह घर के सदस्यों की, समाज की और सरकार की गलतियों को ढूंढते रहते हैं। जिससे किसी का भी आत्मविश्वास डगमगा सकता है। आज हम सभी दूसरों की गलतियाँ निकालने में इतने अभ्यस्त हो चुके हैं कि, प्रोत्साहन और प्रशंसा के जादूई असर को नजरअंदाज़ कर देते हैं। 

दोस्तों, यदि हम किसी को आगे बढाना चाहते हैं तो उसके अच्छे कामो की प्रशंसा करें। उसे आगे बढाने के लिए प्रोत्साहित करें। नाकामियां तो उस रात की तरह है जिसे प्रोत्साहन रूपी प्रकाश से दूर किया जा सकता है। जब किसी की गलती को देखें तो उसको उसकी अच्छाई पहले बताएं फिर अपनेपन से उसकी गलतियों को समझाएं। जैसे कि, यदि एक बच्चा विज्ञान, अंग्रेजी या सामाजिक अध्ययन में क्लास में सबसे ज्यादा अंक ला रहा है। परंतु गणित और हिन्दी में उसे अपेक्षाकृत नम्बर नही मिल रहा हैं तो, उसकी कमियों पर फोकस न करते हुए उससे ये कह सकते हैं कि,  आप के पास बुद्धी है और आप मेहनत भी करते हो तभी तो बाकी विषयों में अच्छा कर रहे हो। आप थोङी ज्यादा मेहनत करोगे तो गणित में भी अच्छे अंक जरूर आयेंगे। उसे विश्वास दिलाएं कि उसका प्रयास सराहनिय है और लगातार प्रयास से सभी विषय में अच्छे अंक आयेंगे। यकिनन ऐसे हौसले से कल्पना के परे परिणाम आते हैं। विपरीत परिस्थिती में लोगों के कटाक्ष से व्यक्ति टूट जाता है लेकिन प्रोत्साहन मिले तो सफलता के रेर्काड तोङ देता है। प्रशंसा और प्रोत्साहन ऐसी जङी बूटियां हैं जो असफलताओं में भी आगे बढने की ऊर्जा देती हैं। वैसे भी सीखना तो नैवर एंडिंग प्रॉसेज है अर्थात कभी न खत्म होने वाली प्रक्रिया। प्रोत्साहन और प्रशंसा तो ऐसा अनमोल उपहार है, जो किसी को भी बिना खर्च के दिया जा सकता है और इससे निराशा के पल में उम्मीद के दिए जलाए जा सकते हैं। प्रोत्साहन और प्रशंसा तो सोने पे सुहागे की तरह है, जिसके मिलने से हम सभी सफलता के शिखर को छू सकते हैं। 

अतः मित्रों, प्रोत्साहन और प्रशंसा के भाव को शब्दो की अभिव्यक्ति दें क्योकि ये भाव एक मिठास की तरह है जो मन में मधुरता और कार्य में सकारात्मक गति प्रदान करते हैं। प्रोत्साहन और प्रशंसा की खुशबु को निश्छल मन से प्रसारित करें क्योंकि सफलता के रास्ते में ये अचूक औषधी है। 

स्वामी विवेकानंद जी ने प्रोत्साहित करते हुए कहा है, All Power is within you; You can do anything & everything. So...

Arise, awake & stop not till the goal is reached. 




Thursday 12 February 2015

Thanks for Co-Operation

Voice For Blind के सभी सदस्यों का हार्दिक स्वागत है। मित्रों इस दौरान मेरे पास कई मेल आई जिसमें अनेक लोगों ने क्लब से जुङकर दृष्टीबाधित लोगों को सहयोग देने की इच्छा व्यक्त की है। कुछ लोगों ने ये भी लिखा कि हम सहलेखक या रेकार्डिंग नही कर सकते परंतु उन लोगों को सहयोग देना चाहते हैं। दोस्तों आप सबके सहयोग को देखकर हमें, हमारी भारतीय संस्कृती पर और अधिक गर्व होता है। सच कहें तो किसी के लिए भी मन में सहयोग की भावना, हमारी भारतीय संस्कृती की पहचान है और हममें से कई लोगों ने ये अनुभव भी किया होगा कि किसी की सहायता करके एक रुहानी खुशी का एहसास होता है। सहयोग की भावना हमारे विकास का आधार भी है।  सहयोग के संदेश को और लोगों तक अपने माध्यम से पहुँचाकर भी आप दृष्टीबाधित लोगों की मदद कर सकते हैं क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि कई लोग कुछ सामाजिक कार्य करना चाहते हैं लेकिन समझ नही पाते क्या करें, ऐसे में आप उन्हे हमारे क्लब के बारे में बता सकते हैं। मानव को ईश्वर का अंश मानने वाले स्वामी विवेकानंद जी ने  अपनी तेज और ओजस्वी वांणी के जरिये  लोगों को सामाजिक कार्यों हेतु प्रोत्साहिक किया था। 

मित्रों, आप अपने व्यस्त समय में से थोङा समय निकालकर अपने आस-पास स्थित किसी दृष्टीबाधित बच्चे की अध्ययन पुस्तिका को पढकर उसे सुना भी सकते हैं। दृष्टीबाधिता ही नही किसी भी प्रकार की विकलांगता, तब तक अभिशाप नही है जबतक हमारा समाज उनके साथ सहयोगात्मक और सकारात्मक सोच के साथ हो। सरकारें तो विकलांग लोगों को सिर्फ आरक्षण देकर नौकरी दे सकती है, परंतु कार्यस्थल पर हम लोगों का सामान्य और समान व्यवहार उन्हे आगे बढने का हौसला देता है। किसी सार्थक काम के लिए कडी  मेहनत करने का अवसर देकर जिंदगी हमें सबसे बङा ईनाम देती है। अतः जब भी किसी भी विकलांग व्यक्ति से मिले उसे मानवीय संवेंदनाओ के साथ सहयोग दें। आम आदमी की दिल्ली में हुई जीत ये साबित करती है कि जन मानस चाहे तो समस्त भारत में जरूरतमंद लोगों के लिए सहयोग की मशाल को भी प्रज्वलित कर सकता है। जिस तरह एक-एक बूंद से सागर बनता है उसी तरह हम सबके थोङे-थोङे सहयोग से दृष्टीबाधिता को भी सहयोग का विशाल सागर मिलेगा, इसी विश्वास के साथ आप सबको पुनः धन्यवाद। 

नोटः-  नई सदस्यता हेतु अधिक जानकारी के लिए लिंक पर क्लिक करें
दृष्टीबाधितों की सहायता कैसे कर सकते हैं

दृष्टीबाधिता के कारण    

Thursday 5 February 2015

वीर दामोदर सावरकर

आधुनिक भारत के इतिहास में केवल दो ही व्यक्ति ऐसे हुए जिन्हे लौह पुरुष कहा जाता है। एक सरदार वल्लभभाई पटेल और दूसरे वीर विनायक दामोदर सावरकर, जिन्होने अंग्रेजी साम्राज्यवाद से भारत को आजाद कराने हेतु इतनी कुर्बानियां दी और यातनाएं सही कि जिनकी गिनती करना भी असंभव है।  जनवरी के अंतिम सप्ताह में मुझे सेलुलर जेल देखने का अवसर मिला, जहाँ अनेक देशभक्तों के साथ अमानवीय अत्याचार किया जाता था। वही पर प्रसिद्ध देशभक्त वीर सावरकर के बारे में और अधिक जानने को मिला। सेलुलर जेल में बंद देशभक्तों में वीर सावरकर ने एक नई ऊर्जा का संचार किया था। आजादी के संघर्ष में वीर सावरकर एक मात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्हे दो बार आजीवन कारावास की सजा दी गई थी, अर्थात उन्हे 50 वर्ष जेल में रहने की सजा हुई। ऐसे ही महान देशभक्त वीर विनायक दामोदर सावरकर के जीवन पर प्रकाश डालने का प्रयास कर रहे हैं। 

वीर सावरकर जी का कहना था कि, "मातृभूमि! तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हुँ। देश सेवा में ईश्वर सेवा है, ये मानकर मैने तेरी सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की।"

विनायक दामोदर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे, हिन्दु राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का श्रेय वीर सावरकर जी को जाता है। सावरकर जी को देशभक्ति और क्रान्तिकारी विचारधारा अपने परिवार से विरासत में मिली थी। उनके बङे भाई गणेंश दामोदर सावरकर  को भी आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। छोटे भाई नारायण दामोदर सावरकर भी भारतमाता की आजादी हेतु कई बार जेल गए थे। तीनो भाईयों में देशभक्ति का जज़बा कूट-कूट कर भरा हुआ था। विनायक दामोदर सावरकर जिन्हे संक्षिप्त में वीर सावरकर के रूप में जाना जाता है, उनका जन्म 18 मई 1883 को महाराष्ट्र में हुआ था। पिता का नाम दामोदर पंत और माता का नाम राधाबाई था। प्रथमिक शिक्षा के बाद वीर सावरकर का दाखिला पूना के फरग्युसन कॉलेज में हुआ किन्तु अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण उन्हे कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया। फिर भी मुंबई विश्वविद्यालय से बी.ए. की परिक्षा पास करने में वे सफल हुए। कानून की शिक्षा प्राप्त करने के लिए 1905 में लंदन गये और बैरिस्ट्री की शिक्षा सफलता पूर्वक प्राप्त किए। लंदन में भी उनकी क्रान्तिकारी गतिविधियाँ जारी रहीं, जिसका प्रमुख केन्द्र था इण्डिया हाउस। अपने लंदन प्रवास के समय सावरकर जी ने भारतवासियों और अंग्रेजों के बीच सन् 1857 में हुए संर्घष पर एक पुस्तक, "भारत का स्वतंत्रता संग्राम 1857" लिखी। इस पुस्तक के माध्यम से सावरकर जी ने ये सिद्ध किया कि ये युद्ध भारतमाता की स्वतंत्रता के लिए हुआ था। ब्रिटिश सरकार ने ये पुस्तक कहीं भी प्रकाशित नही होने दी। छपने से पूर्व ही उसे जब्त कर लिया गया। इंग्लैंड के बाहर ये पुस्तक प्रकाशित हो सकी। भारत में भी इसपर रोक लगा दी गई थी। भारत में ये पुस्तक चोरी-छिपे पहुँची और भारत में इसको पढने वालों का आलम ये था कि इसको पढने के अपराध में उन्हे जेल जाना भी स्वीकार था। सावरकर पहले व्यक्ति थे जिन्होने ब्रिटिश साम्राज्य के केन्द्र लंदन में अंग्रेजों के खिलाफ क्रान्तिकारी आंदोलन शुरु किया था। वीर सावरकर जब लंदन में थे तभी भारत में उनकी गिरफ्तारी का वारंट जारी हुआ था, जिससे उन्हे गिरफ्तार करके उनपर सरकार के खिलाफ विद्रोहात्मक मुकदमा चलाया जा सके। सावरकर भारत जाना नही चाहते थे किन्तु उन्हे गिरफ्तार करके भारत भेजने का प्रबंध किया गया। जिस जहाज से उन्हे भारत भेजा जा रहा था, जब वे जहाज फ्रांस के पास से गुजर रहा था तब जहाज के इंजन में कुछ खराबी के कारण उसे फ्रांस के बंदरगाह की ओर जाना पङा। जहाज जब बंदरगाह से दूर ही था तब सावरकर शौचालय के रास्ते से समुंद्र में कूद गए तथा तैरते हुए मार्शल्स बंदरगाह तक पहुँचने का प्रयास किए, उनके भागने से जहाज पर हङकम मच गई और समुंद्र में उन पर कई गोलियां चलाई गई परंतु सावरकर बंदरगाह पर पहुँचने में सफल हो गये। उन्हे विश्वास था कि फ्रांस की पुलिस उन्हे अंग्रेजों को नही सौपेगी परंतु दुर्भाग्य से ऐसा नही हुआ। इंग्लैंड की पुलिस उन्हे वापस जहाज पर लाने में सफल रही और अत्यधिक सुरक्षा घेरे में सावरकर को भारत लाया गया। भारत में उनपर अनेक मुकदमें चलाए गए और आजीवन कारावास की सजा दी गई। दूसरे मुकदमे में भी आजीवन कारावास की सजा दी गई। इस प्रकार उन्हे 50 वर्ष की सजा सुनाई गई। सावरकर जी को 1911 में अंडमान यानी की कालापानी भेज दिया गया जहाँ उनके बङे भाई पहले से ही आजीवन कारावास की सजा में बंदी थे,यद्यपि दोनो सावरकर बंधु एक ही जेल में थे किन्तु वे आपस में मिल नही पाते थे।  कालापानी अर्थात सेलुलर जेल में सभी क्रांतिकारियों के साथ अत्यंत कठोर अमानवीय व्यवहार किया जाता था। सजा ऐसी कि जिसका इंसानियत से कोई नाता नही था। वहाँ निम्न श्रेंणी का खाना और बदबुदार पानी पीने को दिया जाता था। जिसको खाने से प्रायः अधिकांश कैदी बिमार हो जाते थे। बिमारी के बावजूद कैदियों से नारियल के छिलके कुटवाने का काम करवाया जाता था, जिससे हाँथो में छाले पङ जाते थे। कोल्हु में बैल की जगह क्रांतिकारियों को बाँधा जाता था और तेल निकलवाने का कार्य किया जाता था। अंग्रेजो के अत्याचार से त्रस्त होकर उनके मन में आत्महत्या का विचार भी आया किन्तु  अपनी इस भावना को दूर करने के लिए जेल की दिवारों पर कविताएं लिखते थे। सावरकर जी अपनी बात मनवाने हेतु भूख हङताल करते थे, उनके साथ अन्य कैदी भी भूख हङताल करने लगे। अनेक बार अंग्रेज जेलर ने उनकी भूख हङताल को तोङने की कोशिश की किन्तु जेलर असफल हो गए। सेलुलर जेल में वंदेमातरम् की गूँज के साथ सभी क्रांतिकारी  सावरकर जी के आत्मविश्वास से ऊर्जावान हुए।  जेल में हो रहे अमानुषिक व्यवहार के विरोध में भारत में अनेक सार्वजनिक सभाएं भी हुईं, जिसमें सावरकर बंधुओं को वापस बुलाने की माँग की जाती थी। आंदोलन की तीव्रता की वजह से तत्कालीन भारत सरकार ने दोनों सावरकर बंधुओं को वापस बुलाया। गणेंश सावरकर कालापानी में रहकर इतने बिमार हो गए थे कि उन्हे सजा पूरी होने से पूर्व ही रिहा कर दिया गया। दामोदर सावरकर को कालापानी से वापस लाकर रत्नगिरी जेल में रखा गया। इसके बाद उन्हे यरवदा जेल पूना में भेज दिया गया। उनकी रिहाई की माँग बहुत जोर-शोर से की जा रही थी। अंततः 6 जनवरी 1924 को इस शर्त पर उन्हे रिहा कर दिया गया कि वे पाँच वर्षों तक रत्नागीरी से बाहर नही जाएंगे और किसी भी राजनैतिक गतिविधियों में भाग नही लेंगे। सावरकर दुनिया के पहले राजनैतिक कैदी थे जिनका मुकदमा हेग के अंर्तराष्ट्रीय न्यायालय में चला था। जर्मनी में 1907 की अंर्तराष्ट्रीय सोशलिष्ट कांग्रेस में मैडम भिकाजी कामा ने जो झंडा फैराया था उसको वीर दामोदर सावरकर जी ने ही बनाया था। कट्टर हिन्दुवादी वीर दामोदर सावरकर पर गाँधी जी की हत्या के षडयंत्र का भी आरोप लगा किन्तु साक्ष्य के अभाव में उनपर आरोप सिद्ध नही हुआ। स्वतंत्र भारत में उनपर झूठा आरोप लगाने पर भारत   सरकार ने उनसे माफी माँगी थी।  सावरकर जी का निधन 26 फरवरी 1966 को मुंबई में हुआ।  उनकी शवयात्रा में हजारों लोग शामिल हुए। वीर विनायक दामोदर सावरकर जी की अंतेयष्टी सम्मान पूर्वक की गई। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, आज हम लोग जो स्वतंत्र वातावरण में सांस ले रहे हैं, उसमें वीर सावरकर जी का महत्वपूर्ण योगदान था। 
वंदे मातरम्